कलयुग का वास स्वर्ण और मदिरालय
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कलयुग का वास स्वर्ण और मदिरालय है: पंकज महाराज

श्री महावीर हनुमान तीर्थंक्षेत्र बावन बीघा तालाब पर श्रीमद भागवत कथा

डे समाचार डेस्क, भदोही


भदोही, 16 सितंबर। श्री महावीर हनुमान जी तीर्थंक्षेत्र बावन बीघा तालाब सुरियावां में चल रहे श्रीमद भागवत कथा के आज तृतीय दिवस पर पूज्य पंकज जी महराज ने द्वापर के अंतिम चरण में राजा परीक्षित के जीवन वृतांत पर प्रकाश डाला।

महराज ने बताया कि कलि के प्रारम्भ के कारण महराज परीक्षित ने कलि के प्रभाव को कम करने के लिए अनेक उपाय किये किन्तु कलि ने महराज के दरबार में जाकर अपने आगमन और धरती पर निवास हेतु स्थान सुनिश्चित करने का निवेदन किया।

युग परिवर्तन में महराज परीक्षित के प्रभाव से कलियुग का प्रवेश नहीं हो पा रहा था, कलि के अनुनय पर महराज ने मदिरालय, व्यसन, जैसे अपवित्र स्थान के साथ स्वर्ण में में कलि को वास करने का आदेश दिया।

यही से कलि का प्रभाव शुरू हुआ और महराज के स्वर्ण मुकुट धारण के समय कलियुग का राजन के मस्तिष्क पर कुप्रभाव दिखने लगा और जंगल में भ्रमण के दौरान ऋषि मुनि के आश्रम में पानी पीने हेतु जल का आग्रह करने पर महर्षि द्वारा ध्यान अवस्था में होने के कारण राजा ने क्रोध व अपमान मानकर वही पास पड़े मृत सर्प को महर्षि के गले में डाल दिया गया। यही कलियुग का कुप्रभाव था।

कुछ देर बाद अन्य साधु संतो द्वारा अपने गुरु के साथ हुए दुर्व्यवहार की सूचना उनके पुत्र को देने पर ऋषि पुत्र द्वारा अपने पिता के साथ हुए अपमान के लिए राजा परीक्षित को श्राप दे दिया कि तक्षक सर्प के सर्पदंश से ही उनकी मृत्यु सात दिन के अंदर हो जाएगी।

राजा परीक्षित ने राजमहल वापस आने के बाद जब राजा को अपने गलती का अहसास हुआ और यह मालूम हुआ कि ऋषि पुत्र द्वारा दिए गए श्राप के कारण उनकी मृत्यु सातवे दिन सुनिश्चित हो गयी हैं, तब उन्होंने कुलगुरु आदि संतो के सुझाव पर राजपाठ अपने पुत्र को सौपकर प्रयासश्चित व मोक्ष प्राप्ति के लिए वन गमन का मार्ग चुनाअनेक बाधाओं को पार करने के बाद उन्हें सुकदेव जी महराज का सानिध्य मिला और नैमिषारन्य नामक स्थान पार श्रीमद भागवत कथा का अमृत पान का अवसर मिला। यह कथा अमर कथा हैं जिसके श्रवण करने से मनुष्य भव सागर को पार कर अमरत्व प्राप्त करता हैं। सबसे पहले यह कथा ब्रह्मा जी ने शंकर जी को एवं भगवान शंकर जी ने माता पार्वती जी को सुनाया था। पूज्य पंकज जी महराज के श्री मुख से प्रसंग का संगीतमय वर्णन सुनकर उपस्थित सैकड़ो स्रोतागण आनन्द मय होकर भागवत भक्ति में लीन हो गए।


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