बिहार की सांस्कृतिक विरासत 'छठ महापर्व' विदेशों तक फैला
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बिहार की सांस्कृतिक विरासत ‘छठ महापर्व’ विदेशों तक फैला

अनिल मिश्र/पटना

छठ-व्रत महापर्व की शुरुआत नहाए-खाए से होती है। यह व्रत पुत्र की कामना, संतान की लंबी आयु,परिवार की सुख-समृद्धि, रोग -व्याधि से मुक्ति आदि के लिए बड़ी श्रद्धा, विश्वास और पवित्रता से की जाती है। यह महापर्व अति शुद्ध, पवित्र और आडंबर विहीन है, इसलिए इसे हिंदू धर्मावलंबी के अलावा दूसरे धर्म के मानने वाले भी कुछ लोग इस व्रत को करते हैं। इस महापर्व का धार्मिक महत्व अत्यधिक लोकप्रिय होने के कारण अब यह महापर्व बिहार प्रदेश से शुरू होकर पूरे देश के अलावा बड़े -बड़े महानगरों से लेकर विदेशों में भी भारत के मिट्टी से जुड़े हुए लोग अमेरिका, इंग्लैंड,जापान, नेपाल, थाइलैंड, मालदीव सहित कई देशों में पूरी श्रद्धा,आस्था और विश्वास के साथ विदेशी कल्चर में रहने वाले आज आधुनिक युवा पीढ़ी में भी इस महापर्व को करने के प्रति श्रद्धा और विश्वास बढ़ी है ।

बिहार की सांस्कृतिक विरासत 'छठ महापर्व' विदेशों तक फैला
वैदिक काल से ही सूर्य को एक प्रमुख देवता के रूप में प्रतिस्थापित किए गए। उस समय मूर्ति पूजा का कोई प्रचलन नहीं था। केवल मंत्रोच्चार के द्वारा ही पूजा-अर्चना की जाती थी। उन्हें साक्षात ईश्वर का प्रतिरूप मानकर संबोधित किया जाने लगा। जो लोग सूर्य को ही ईश्वर मानते थे,उनका एक अलग पंथ चला जो “सौर पंथ” कहलाया। मूर्ति रूप में सूर्य की प्रतिमा का प्रथम प्रमाण गया की कला में मिली है,जिसका समय ईसा की प्रथम शताब्दी माना गया है।पौराणिक और धार्मिक एवं अध्यात्मिक मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के पुत्र शाम्ब जो माता जामवंती से उत्पन्न हुए थे,वे अत्यधिक सुंदर और आकर्षक थे। परंतु श्रापवश उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। तब लंबे समय तक उन्होंने सूर्य की आराधना की, जिससे उन्हें कुष्ठ रोग से मुक्ति मिल गई । मान्यता है कि इससे प्रसन्न होकर शाम्ब ने तीन सूर्य मंदिरों का निर्माण करवाया था। वे तीन मंदिर हैं– कोणार्क का सूर्य मंदिर,कालपी का सूर्य मंदिर और मुल्तान का सूर्य मंदिर। कोणार्क मंदिर में उदयकालीन सूर्य, कालपी में मध्यान्ह कालीन सूर्य तथा मुल्तान जो पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में है संध्याकालीन सूर्य की प्रतिमाएं स्थापित की गई थी।

इस मुल्तान में सूर्य की प्रतिमा सोने की विशाल सूर्य मंदिर के भीतर स्थापित थी,जिसका विशद वर्णन ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में किया है। बाद में विद्वान अलुबरनी ने इस मंदिर में लकड़ी की मूर्ति होने का उल्लेख किया है। ऐसा अनुमान है कि आक्रमणकारियों द्वारा लूटपाट के उपरांत यहां की स्वर्ण मूर्ति के स्थान पर लकड़ी की मूर्ति स्थापित की गई होगी। मुल्तान का यह मंदिर पहले महमूद गजनवी का शिकार बना, बाद औरंगज़ेब की अत्याचारों का भी शिकार बना। कालांतर में मुल्तान को पाकिस्तान में चले जाने पर वहां के मुस्लिमों के अत्याचार से इस मंदिर के अब भग्नावशेष भी नहीं बचे हैं।उड़ीसा का कोणार्क सूर्य मंदिर जो विश्व में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है,वह भी अन्य मंदिरों के समान अनेक बार तोड़फोड़ का शिकार हुआ। इस मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण सम्राट नरसिंह देव प्रथम ने 1238 से 1268 ई के अपने शासनकाल में निर्माण करवाया। यह मंदिर प्रसिद्ध जगन्नाथ पुरी से करीब तीस किलोमीटर उत्तर पूर्व समुद्र तट के समीप चन्द्रभागा के पास स्थित है, जो विश्व में कलिंग स्थापत्य शैली का एक बेजोड़ नमूना है।बिहार राज्य का अति लोकप्रिय छठ पर्व बिहार राज्य के अलावा पूरे देश के साथ- साथ विदेशों में बड़ी श्रद्धा, आस्था, पवित्रता और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व वर्ष में दो बार कार्तिक और चैत्र मास में किया जाता है। कार्तिक शुक्ल चतुर्थी और चैत्र मास शुक्ल चतुर्थी से आरंभ होकर यह पर्व कार्तिक और चैत्र मास शुक्ल सप्तमी को प्रातः उदयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर व्रत की समाप्ति की जाती है। तत्पश्चात व्रती स्त्री अथवा पुरुष खरना यानी जलग्रहण कर व्रत को विराम देते हैं। इस पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से आरंभ होता है। जिसमें व्रती स्नान आदि से निवृत होकर कदु की सब्जी,चना के दाल और अरवा चावल के साथ खाना खाकर शुरू करते हैं।इस बीच सेन्धा नमक का प्रयोग किया जाता है।उसके दूसरे दिन शाम के समय खीर और पुड़ी अस्ताचलगामी सूर्य को पूजा कर प्रसाद ग्रहण करती है।वही यह प्रसाद और लोग भी ग्रहण करते हैं।इस दिन नमक का प्रयोग वर्जित है। जबकि तीसरे दिन और रात पूरे उपवास पर रहकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर और चौथे दिन सुबह में उदयाचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर एवं पूरी विधि विधान से पूजा अर्चना कर पारण कर व्रत का समापन करते हैं।

यों तो अपने देश के प्रमुख सूर्य मंदिरों में यूनेस्को विश्व धरोहर का कोणार्क सूर्य मंदिर, दक्षिणार्क सूर्य मंदिर,मोढेरा सूर्य मंदिर, अल्मोड़ा जिले का कटारमल सूर्य मंदिर,रणकपुर सूर्य मंदिर, देव का एकमात्र सूर्य मंदिर जिसका दरवाजा पश्चिम मुख का है, औंगारी सूर्य मंदिर, हड़िया का सूर्य मंदिर,गया का सूर्य मंदिर,बांके धाम का सूर्य मंदिर,खनेटू का सूर्य मंदिर,बेलार्क का सूर्य मंदिर,महोबा एवं रहली का सूर्य मंदिर,रांची का सूर्य मंदिर, जम्मू और कश्मीर का सूर्य मंदिर, कंदाहा का सूर्य मंदिर,नीरथ-हिमाचल का सूर्य मंदिर, कोट-देवलास (देवलस गांव) प्राचीन सूर्य मंदिर आदि की महिमा अपार है। इसके अलावा विदेशों के अति प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों में कंबोडिया का अंकोरवट, चीन के बीजिंग में मियांग राजवंश का सूर्य मंदिर, मिश्र का प्राचीन सूर्य मंदिर और मुल्तान-पाकिस्तान के अति प्रसिद्ध सूर्य मंदिर को विध्वंस किया हुआ ऐतिहासिक सूर्य मंदिर आदि उदाहरण है।

दक्षिण भारत में भी कई ऐतिहासिक प्रमुख सूर्य मदिर हैं। उनमें तमिलनाडु का सूर्यनार कोविल जो कुंभ कोणम के पास स्थित एक विख्यात सूर्य मंदिर है, जिसमें उनके वाहन में अश्व की प्रतिमा है, बेलगांव-कर्नाटक का मतलगा नामक स्थल में लगभग 400 वर्ष पुरानी एक स्थापित सूर्य की प्रतिमा के सामने प्रतिदिन सूर्य-सूक्त का पाठ किया जाता है। किंतु भारत के समस्त प्राचीन सूर्य मंदिरों की उचित देखभाल का अभाव है। उसे आवश्यकता अनुसार उसे विकसित और संरक्षित करने की नितांत आवश्यकता है, तभी हमारी प्राचीन संस्कृति और इतिहास की अस्मिता अक्षुण्ण बनी रह पायेगी।

 

!!समाप्त!!


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